------------------------------------------------------- ------------------------------------------------ माडज गाव: धाराशिवचे धाकटे पंढरपूर आणि त्याचा चालुक्य कालीन इतिहास |History of Madaj village during Chalukya period | Madaj Village: The Small ( धाकटे) Pandharpur of Dharashiv and Its Chalukyan Heritage Uncovered

माडज गाव: धाराशिवचे धाकटे पंढरपूर आणि त्याचा चालुक्य कालीन इतिहास |History of Madaj village during Chalukya period | Madaj Village: The Small ( धाकटे) Pandharpur of Dharashiv and Its Chalukyan Heritage Uncovered

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                                                                           छायाचित्र माडज गांव : दिनांक १३-०१-२०२५

History of Madaj village during Chalukya period 

901 साल पहले माडज गांव का उल्लेख मूलवट्टी के रूप में

माडज गाव: धाराशिवचे धाकटे पंढरपूर आणि त्याचा चालुक्य कालीन इतिहास|History of Madaj village during Chalukya period 

पूर्व उस्मानाबाद यानी धाराशिव जिल्हे  के उमरगा तालुका में माडज गांव को धाकटे पंढरपुर के नाम से जाना जाता है। हजारों वर्षों से चली आ रही यह परंपरा जहां आज भी कायम है, वहीं प्राचीन महादेव मंदिर में चालुक्यकालीन इतिहास की खोज ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं।

यह स्पष्ट है कि माडज गांव का इतिहास चालुक्य काल से जुड़ा है और यहां का शिलालेख पढ़ा गया है।


वर्ष 1123 यानी, आज से लगभग 901 साल पहले माडज गांव का उल्लेख मूलवट्टी के रूप में किया गया है और यहां सोमरस द्वारा केशव देव का मंदिर बनाकर स्थापित किये जाने का उल्लेख मिलता है।


उमरगा तालुका के माडज गांव में एक प्राचीन महादेव मंदिर और पुष्करणी है।

इस मंदिर के सामने पुरानी कन्नड़ लिपि में एक शिलालेख लगा हुआ है, और चूंकि यह कहीं पढ़ने लायक नहीं मिला, इसलिए इतिहासकार कृष्ण गुडदे ने शिलालेख की छाप लेकर शोध किया और मंदिर तथा गांव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई। माडज में यह घटना पहली बार प्रकाश में आई है।

शिलालेख ऊपर और नीचे से थोड़ा टूटा हुआ है। शीर्ष पर एक गाय, एक तलवार और विष्णु की मूर्ति अंकित है। यह शिलालेख 28 पंक्तियों का है और पुरानी कन्नड़ लिपि में है।

शिलालेख की शुरुआत:- भगवान विष्णु के वराह अवतार की प्रशंसा में एक श्लोक से हुयी है. 

अभिनेता ऋषभ शेट्टी की सुपर हिट रही मूवी कांतारा में "वराह रूपम" सॉन्ग बहोत ही प्रचलित  हुवा था,  माडज  के  प्राचीन महादेव मंदिर के सामने रखा हुआ यह शिलालेख भी भगवान विष्णु के वराह अवतार की प्रशंसा में एक श्लोक से शुरू होता है, जिसके बाद शिव की प्रशंसा और श्रद्धांजलि में एक श्लोक है।

चूंकि शिलालेखों में कल्याण चालुक्य राजा त्रिभुवन मल्लदेव यानी छटा (6th) विक्रमादित्य की कई उपाधियों का उल्लेख किया गया है, जयंतीपुर जब बनवासी यहाँ शासन करते थे। यहासे राज्य करते हुए यह शिलालेख वैशाख के शोभुकृत संवत्सर की शुद्ध त्रयोदशी के प्रथम दिन रविवार को स्थापित किया गया था, 

चालुक्य काल में सीमाएँ और जमीन दान का उल्लेख

बल्लाहदेव के पुत्र अधिकारी सुरिमाया सोमरस ने केशव देव को मूलवट्टी अर्थात् माडज गांव में स्थापित किया। बहुत सारी जमीन भी दान कर दी। दान की गई भूमि की सीमाएं शिलालेख में बताई गई हैं।

कुछ अन्य सीमाएं भी दी गई हैं, कोंडजी के रास्ते में गड्ढे से लेकर देवदत्त चट्टोपाध्याय के खेत तक तथा वाघ के पहाड़ से ओहोल तक, लेकिन क्षतिग्रस्त अक्षरों के कारण सीमाएं स्पष्ट नहीं हैं।


मूलवट्टी में सीमा सहित तीन मत्तर जमीन दान की। उन्होंने गांव के दक्षिण में एक खेत जिसे शेत मळा कहा जाता है  दान कर दिया था । यह ज्ञात नहीं है कि कितना दान किया गया था, क्योंकि वहां लगा शिलालेख फटा हुआ है।

बाद में, उसी शिलालेख में उल्लेख किया गया है कि त्रैलौक्यमल ने केशव देव को मुलदिघे में एक सौ मत्तर भूमि दान में दी थी।

शिलालेख का अंतिम सन्देश 

शिलालेख इस संदेश के साथ समाप्त होता है कि जो कोई भी दिया गया उपहार तोड़ेगा या चुराएगा (Grabbed), उसका पुनर्जन्म अगले 60,000 वर्षों तक (विष्टेतील) गोबर में कीड़े के रूप में होगा।

इस अवसर पर विस्तृत शोध पत्र प्रस्तुत किया जाएगा, तथा अभिलेख भी पढ़ा जाएगा।


इस स्थान से प्राप्त दान के कई उल्लेख शिलालेखों में मिलते हैं। शिलालेखों को पढ़ने से माडज के इतिहास में और अधिक जानकारी मिलती है तथा चालुक्य काल के दौरान मंदिर और गांव का इतिहास प्रकाश में आता है।

इतिहास के विद्वान कृष्ण गुडदे ने कहा कि वे इस पर एक विस्तृत शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। इस शिलालेख को डॉ. रविकुमार नवलगुंडा ने पढ़ा और डॉ. सुजाता शास्त्री की मदद से इसका अनुवाद किया।

अजिंक्य शहाणे, अभय परांडे और सत्यनारायण जाधव की  भी मदद ली गयी  है।


इतिहास 

चालुक्य का इतिहास में सबसे पुराना रिकॉर्ड इ.स. 543 का है 






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