------------------------------------------------------- ------------------------------------------------ श्री राम काल कैसा था / how was ramrajya/ Ram pran Pratishtha 2024

श्री राम काल कैसा था / how was ramrajya/ Ram pran Pratishtha 2024

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श्री राम काल कैसा था  |How was ramrajya |Ram pran Pratishtha 2024



22 जनवरी 2024 के दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण हुई: आयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण देशवासियों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। 

पहली बार रामलला देशवासियों के सामने आए हैं। यह एक ऐतिहासिक क्षण है जो लोगों के लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का संकेत है।

 
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रामराज्य वह साम्राज्य है जिसमें अधर्म, अन्याय और दुख अबस्तित होते हैं। राम के राज में सभी वर्गों के लोग सुखी थे, और उन्हें किसी प्रकार की कठिनाई नहीं थी। इसे 'रामराज्य' कहकर सुना जाता है, जिसमें समृद्धि, शांति, और सभी के लिए समानता होती है

रामायण-काल में अत्याचारी शासक के लिए कोई स्थान नहीं। ऐसे राजा को न केवल निष्कासित ही किया जा सकता था, बल्कि उसे मृत्युदंड भी दिया जा सकता था। राजा सगर ने अपने ज्येष्ठ’ पुत्र ‘असमंजस’ को इसी प्रकार राज्य से निकाल दिया था। ‘वेन’ नाम के राजा को मृत्युदंड भी दिया गया था।


रामराज्य में संसद का भी उल्लेख है। संसद में अमात्यों, प्रतिष्ठित ब्राह्मणों और क्षत्रियों के अतिरिक्त शूद्रों, किसानों तथा अन्य नगरवासियों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित होते थे संसद के सदस्यों को पूर्ण वैचारिक स्वतंत्रता प्राप्त थी और उनके निर्णय के अनुसार ही कार्य किया जाता था।

वाल्मीकि ने रामायण में जनता की खुशहाली की चर्चा की है। वहां समयानुसार वृष्टि’ होती थी और सदा सुख देने वाला पवन चलता था। नगरों और देहातों में ‘हृष्ट-पुष्ट’ मनुष्य रहते थे। किसी की असामयिक मृत्यु नहीं होती थी और न कोई किसी प्रकार के रोग से पीड़ित था। श्रीराम उदास होंगेइस विचार से आपस में लोग एक दूसरे का जी तक नहीं दुखाते थे। चारों वर्णों में से कोई भी लोभी या लालची नहीं था। सब अपना अपना काम करते हुए संतुष्ट’ रहा करते थे। रामराज्य में संपूर्ण प्रजा धर्मरत थी और झूठ से दूर रहती थी।


रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने रामराज्य पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया, सारे भय–शोक दूर हो गए एवं दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गई। कोई भी अल्पमृत्यु, रोग–पीड़ा से ग्रस्त नहीं था, सभी स्वस्थ, बुद्धिमान, साक्षर, गुणज्ञ, ज्ञानी तथा कृतज्ञ थे।

 

राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।

बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।

राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।

काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं।।

 रामराज्य में लोकतंत्र का स्वरूप


रामराज्य में, आधुनिक लोकतंत्र की तरह, जनता की भागीदारी को बहुत महत्त्व दिया जाता था। वाल्मीकि रामायण बताती है:


उसकी संसद, यानि मंत्रिपरिषद, हर वर्ग का प्रतिनिधित्व खुद में लेकर चलती थी-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, किसान हो या शिल्पकार सबकी बात वहाँ सुनी जाती थी।


निर्णय लेते वक्त पूरी पारदर्शिता रहती थी, राजा राम खुद अपनी बातों से पहले मंत्रियों और आम जन की राय को ध्यान में रखते थे।


जिसे हुकूमत के ऐशो-आराम से नहीं, बल्कि जनहित से मतलब नहीं था, उसे वहाँ कोई रास्ता नहीं मिलता था-राजा वेन का ऐसा ही उदाहरण है, उसे प्रजा का शोषण करने पर मौत की सजा मिली थी।


इससे साफ है कि रामराज्य एक तरह का लोकतंत्र था, जहाँ हर आदमी की आवाज़ महत्व रखती थी।


रामराज्य और आधुनिक भारत: क्या सीख ले सकते हैं?

आज के भारत में भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता और राजनीतिक स्वार्थ जैसी बडी-बडी मुश्किलें सामने हैं। रामराज्य के सिद्धांत इन्हीं सवालों से निपटने की राह दिखा सकते हैं।


न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था

रामराज्य में भ्रष्टाचार की गुंजाइश नहीं थी, क्योंकि हर शासक धर्म के रास्ते पर ही चलता था।

आज के नेताओं को भी ईमानदारी और जनसेवा को सबसे पहले रखना होगा।


सामाजिक समरसता

रामराज्य में ऊँच-नीच का भेद खत्म था, सभी वर्गों को बराबर अधिकार मिले थे।

आज भी जाति, धर्म या किसी और आधार पर बंटवारा खत्म करने की जरूरत उतनी ही है।


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